महाराष्ट्र में दलित महिला सरपंच को नहीं फहराने दिया तिरंगा
Indian
सोमवार, अगस्त 17, 2015
caste discrimination
,
crime against dalits
,
dalit srapnach not allowed to hoist the flag
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जहा मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में दलित सरपंच बादामी बाई ने 4 साल के संघर्ष के बाद किसी तरह स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फैराने का अधिकार प्राप्त किया। वही देश के 69वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शनिवार को महाराष्ट्र के सांगली जिले में दलित महिला सरपंच को तिरंगा नहीं फहराने दिया गया।
घटना आरग गांव की है जहां महिला सरपंच विशाखा कांबले को तिरंगा फहराने से रोक दिया गया। उनकी जगह गांव के उप सरपंच अनिल काबू ने खुद ही झंडा फहराया। इस घटना से गांव के दलित समुदाय के लोगों में काफी गुस्सा है।
विशाखा कांबले जी को भी मुरैना की बादामी बाई से सीख लेते हुए अनसन और कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए तभी जा कर प्रशासन हरकत में आएगा। एक दलित महिला का सरपंच बनना महिला ससक्तिकरण के साथ में सामाजिक बदलाब का भी प्रतीक हैं।
बाबा साहेब के प्रयासों से दलित एवं आदिवासियों को आरक्षण के रास्ते पंच-सरपंच बनने का मौका तो मिल गया हैं लेकिन ये बातें ऊँची जाती के लोगो को रास नहीं आती। वैसे भी महाराष्ट्र का दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में रिकॉर्ड बहुत ख़राब रहा हैं वह आजादी के 68 साल बाद भी देश दलितों के प्रति भेदभाव, छुआछूत, जातिगत अपराध और हिंसा खुलेआम जारी है।
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विशाखा कांबले अपने दफ्तर में |
विशाखा कांबले जी को भी मुरैना की बादामी बाई से सीख लेते हुए अनसन और कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए तभी जा कर प्रशासन हरकत में आएगा। एक दलित महिला का सरपंच बनना महिला ससक्तिकरण के साथ में सामाजिक बदलाब का भी प्रतीक हैं।
बाबा साहेब के प्रयासों से दलित एवं आदिवासियों को आरक्षण के रास्ते पंच-सरपंच बनने का मौका तो मिल गया हैं लेकिन ये बातें ऊँची जाती के लोगो को रास नहीं आती। वैसे भी महाराष्ट्र का दलितों के खिलाफ हिंसा के मामले में रिकॉर्ड बहुत ख़राब रहा हैं वह आजादी के 68 साल बाद भी देश दलितों के प्रति भेदभाव, छुआछूत, जातिगत अपराध और हिंसा खुलेआम जारी है।
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